Women in advertisement |Hindi| विज्ञापन में महिला

किसी उत्पाद अथवा सेवा को बेचने अथवा प्रवर्तित करने के उद्देश्य से किया जाने वाला जनसंचार ‘विज्ञापन’ कहलाता है । ‘विज्ञापन’ शब्द को अँग्रेज़ी भाषा में Advertising कहते हैं । इस अँग्रेज़ी भाषा शब्द ‘एडवर्टाइज़िंग’ की उत्पत्ति लैटिन के ‘एडवर्टर’ शब्द से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘टू टर्न टू’ – किसी ओर मुड़ना या फिर, जैसाकि विज्ञापन करता है जिन लोगों तक संदेश पहुँचाता है उन्हें उस संदेश की ओर प्रेरित करता है । आज व्यावसायिक जगत् में विज्ञापन का अर्थ ग्राहकों को विशेष वस्तुओं एवं सेवाओं के बारे में जानकारी देकर उन वस्तुओं एवं सेवाओं की ओर मोड़ने से है । इस प्रकार यह एक ऐसी संचार प्रक्रिया है, जिसके द्वारा नए ग्राहक को जोड़ा जा सकता है और पुराने ग्राहकों को स्थायी बनाया जा सकता है । विज्ञापन माध्यम एक ऐसा साधन है जिसमें विज्ञापनकर्ता अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं या विचारों के बारे में एक विशाल जन – समुदाय को संदेश पहुँचाते हैं ।

तो आइए हम विस्तार पूर्वक Women in advertisement |Hindi| विज्ञापन में महिला विषय को जानते हैं ।

टेलीविजन हो, रेडियो हो या फिर समाचार – पत्र । आज प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञापनों की भरमार है । तरह – तरह से विज्ञापनों में कई दावे किए जाते हैं कि उनके उत्पादों का प्रयोग करने से सारी तकलीफें दूर हो जाएंगी । किसी बच्चे के उत्पाद से लेकर औरतों, पुरूष तथा बुजुर्ग इत्यादि सभी के उत्पादों को हमारे सामने ऐसे प्रस्तुत किया जाता है जैसे वह कोई मंत्र बेच रहे हों, जिसे हम प्रयोग करें और तुरंत सब ठीक हो जाए ।

महिलाओं की भूमिका भी इससे अछूती नहीं है । किसी खास क्रीम जो सांवले रंग को गोरा कर दे या किसी बेबी फूड जो चंद दिनों में अपने बच्चों को तंदरूस्त और सेहतमंद बनाने का विज्ञापन करते हुए हर जगह दिखाई देती हैं ।

विज्ञापनों में तो यहाँ तक दावा किया जाता है कि मोबाइल खरीदकर महिला आजादी से जी सकती है। वह घंटों किसी से बात कर सकती है । ऐसे विज्ञापनों से यह प्रतीत होता है जैसे पुरूषों का तो मोबाइल से दूर – दूर तक कोई नाता नहीं है । पुरूष तो मोबाइल का प्रयोग करते ही नहीं हैं । इसके साथ ही पुरूषों की वस्तुएँ जैसे शेविंग क्रीम, रेज़र, उनके बनयान इत्यादि का भी विज्ञापन करती महिलाएँ नज़र आती हैं । लेकिन प्रश्न यह है कि जिस तरह महिलाओं को विज्ञापन के लिए प्रस्तुत किया जाता है वह कितना सही है ?

विज्ञापनों का मकसद वस्तुओं का विक्रय करना होता है । इसके लिए ग्राहक को निशाना बनाया जाता है । कभी महिलाएँ स्वयं निशाना बन जाती हैं । कभी उनके आकर्शन से प्रभावित होकर पुरूष भी किसी खास वस्तु को खरीदने के लिए प्रेरित होते हैं ।

पहले विज्ञापनों में पुरूषों की भूमिका अधिक थी लेकिन अब समय बदल गया है । आज महिलाओं की भूमिका हर क्षेत्र में अत्यंत तेजी से बढ़ रही है । राजनीति से लेकर शिक्षा, कम्प्यूटर तथा कॉर्पोरेट जगत् में भी महिलाएँ बढ़ – चढ़ कर आगे आ रही हैं । लेकिन क्या महिलाओं की स्थिति हमारे समाज में सुधर पाई है ? क्या मीडिया में उसके प्रस्तुतिकरण में कोई भी परिवर्तन आया है ? महिलाएँ विज्ञापन की एक महत्त्वपूर्ण अंग बन चुकी हैं । चाहे वह घरेलू वस्तुओं का प्रचार हो, चाहे पुरूषों की रोज़मर्रा की जरूरत की वस्तुओं का प्रचार । महिलाओं को हमेशा से एक अत्यंत प्रभावशाली यंत्र की तरह इस्तमाल किया जा रहा है ।

शुरुआती दौर में Women in advertisement |Hindi| विज्ञापन में महिला को एक पत्नी, बहू, बहन और माँ के रूप में ही देखा जाता था । वह एक कमजोर और पुरूषों पर आश्रित व्यक्तित्व की तरह पेश की जाती थीं । उस समय जो लोगों की सोच थी, वातावरण था, उसके अनुकूल महिलाओं का चित्रण विज्ञापनों के जरिए किया जाता था ।

जैसे – जैसे समय बदला, विज्ञापन में महिलाओं की भूमिका भी बदल गई । आज महिला बाइक, स्कूटि और कार का विज्ञापन करने लगी हैं । एक समझदार गृहणी से लेकर सर्फ, साबून, कैडबरी इत्यादि का विज्ञापन तथा कभी खुलकर नृत्य करती हुईं महिलाएँ भी विज्ञापन करने लगी हैं । आज के विज्ञापनों में महिलाओं को तरह – तरह के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है । इनमें से कई प्रस्तुतिकरण हमारे संस्कृति के अनुकूल होते हैं तो कई पाश्चात्य् संस्कृति से प्रभावित होते हैं । लेकिन इन सब से कहीं न कहीं महिलाओं के प्रस्तुतिकरण की वजह से विज्ञापन बनाने वाली कम्पनियों को अत्यंत लाभ होता है । लोग विज्ञापनों में महिलाओं के प्रस्तुतिकरण को देख तथा उनके आकर्षण से भी उत्पाद खरीदने के लिए जागरूक होते हैं । यह सब चलचित्र के माध्यम से भी सम्पन्न हो पाया है जो लोगों के विचार – धारा और दिमाग पर खास असर डालते हैं ।

आज महिलाओं को अधिक गोरा ही दर्शाया जाता है । जैसे गोरा होना ही सबकुछ हो । यदि वह गोरी नहीं हैं तो उनकी शादी में अर्चन आ रही है या नौकरी मिलने में परेशानी हो रही है । इन सब परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए फेयरनेस क्रीम को विज्ञापन के जरिए दर्शाया जाता है । जिसमें विज्ञापन करती महिलाएँ यह दिखाती हैं कि फेयरनेस क्रीम लगाते ही उनकी दुनिया बदल जाती है । उनके पीछे सारी दुनिया भागने लगती है । इसप्रकार की सोच रखने वाले विज्ञापनकर्ता या लेखक समाज को बर्बाद कर रहे हैं । आज दुनिया कहाँ से कहाँ तक पहुँच गई है लेकिन ऐसी मानसिकता के लोग हमारे समाज में बसी कुरीतियों को और मजबूत कर रहे हैं । बात यह नहीं है कि सारी विज्ञापन कम्पनियाँ ऐसा करती हैं । कुछ समाज में फैली महिलाओं के प्रति कुरीतियों को भी दूर करने की कोशिश करते हैं । ‘तनिष्क’ जैसी बड़ी ब्रैंड की कम्पनी ने अपने विज्ञापन में महिला के पुनर्विवाह को दर्शा कर सामाजिक कुरीतियों को फिर से उजागर कर पुनर्विवाह के लिए प्रेरित किया है । कुछ विज्ञापनकर्ता महिलाओं को सशक्त रूप में प्रस्तुत करते हैं । जैसे ‘टाइटन’ ने अपने प्रचार में ‘सिंगल वर्किंग वुमन’ को दर्शाते हुए समाज में हो रहे परिवर्तन को दिखाया है ।

कुछ विज्ञापनकर्ता पारम्परिक ढंग से विज्ञापन में महिलाओं की प्रस्तुतिकरण करते हैं । जैसे ‘एरियल’, ‘घड़ी’, ‘विम – बार’ इत्यादि सर्फ – साबून के विज्ञापन में महिलाओं के घरेलू रूप पर प्रश्न चिह्न उठाया है । उन सभी विज्ञापनों में यह दिखाया जाता है कि आज महिला चाहे जितनी भी सशक्त क्यों न हो जाए लेकिन कुछ काम जैसे कपड़े या बर्तन धोने का काम उसे ही करने पड़ते हैं । प्रश्न यह है कि ऐसे विज्ञापनकर्ता पुरूषों से क्यों नहीं विम बार या डिटर्जेंट का विज्ञापन करवाते हैं ? क्या वह समाज को यह दिखाना चाहते हैं कि कपड़े या बर्तन धोने का कार्य सिर्फ महिलाओं का है ? आज पुरूषों की भाँति महिलाएँ भी बाहर काम करती हैं । यहाँ तक कि घर हो या बाहर प्रत्येक कार्यों को महिलाएँ बखूबी से करती हैं । आज पुरूष भी तत्पर हो रहे हैं महिलाओं के साथ कदम से कदम मिलाने का । तब क्यों ऐसे विज्ञापनकर्ता अपनी सोच को समाज पर थोप कर उसे बिगाड़ रहे हैं ।

नारी सशक्तिकरण पर बने ‘वो’ नामक पत्रिका के विज्ञापन में दीपिका पादुकोण काफी चर्चा में रहीं । ‘माई चॉयस’ थीम पर बने इस विज्ञापन में काफी बातें ऐसी कही गईं, जिसे हम नारीवाद के हक में नहीं कह सकते । नारीवाद समाज में महिला और पुरूष की बराबरी की बात करता है ना कि पुरूष को नीचा दिखाकर महिला को बड़ा दिखाना नारीवाद कहलाता है ।

मीडिया और समाज एक दूसरे पर आश्रित हैं । महिलाओं का विज्ञापन में प्रस्तुतिकरण हमारे समाज का आईना है, क्योंकि विज्ञापन से ही हमारा समाज सीखता है तथा लोगों में एक नई सोच पनपती है। उसी प्रकार कई बार ऐसा भी देखा गया है कि विज्ञापन समाज को एक रास्ता दिखाने योग्य मार्ग – दर्शक भी बनता है । जैसा कि ‘हिरो’ कम्पनी का विज्ञापन ‘Why should boys have all the fun’ कहीं न कहीं इस विज्ञापन के बाद कुछ प्रतिशत मध्यम वर्गीय परिवार की महिलाओं में स्कुटि को लेकर जागरूकता आई है । यूँ  कहें कि विज्ञापन ही हमारे समाज को आईना दिखाते हैं । इसलिए विज्ञापनकर्ता और विज्ञापन एजेंसी को किसी भी विज्ञापन को बनाने से पहले उसके प्रभाव के बारे में जरूर सोचना चाहिए तथा महिलाओं को एक प्रदर्शन की वस्तु नहीं बल्कि पुरूषों की तरह ही एक साधारण इन्सान के रूप में पूरे सम्मान के साथ ही विज्ञापन में प्रस्तुत करना चाहिए । इसका एक उपाय यह भी है कि विज्ञापन बनाते समय महिलाओं की भी राय लेनी चाहिए । उनके प्रस्तुतिकरण पर सहयोगी महिलाओं या आम महिलाओं से विचार – विमर्श करना आवश्यक है ।

विज्ञापन के क्षेत्र में बदलाव अत्यंत आवश्यक है । बदलाव आएगा तभी उसका सकारात्मक प्रभाव सामाजिक रूप से भी नजर आएगा । एक सबसे ज्यादा उल्लेखनीय विज्ञापन स्टार स्पोर्टस का विज्ञापन ’चेक आउट माइ गेम’ महिलाओं को घूरने वालों को करारा जवाब देती प्रतीत होती है । इसमें देश की प्रमुख महिला एथलीटों को अपना – अपना खेल खेलते दिखाया गया है । जहाँ साइना नेहवाल कहती है कि मेरी सर्विस देखो, तो मैरी कॉम कहती है कि मेरा पंच देखो । तो कोई एथलीट कहती है कि मेरा खेल देखो । यह विज्ञापन महिलाओं के प्रति हमारे समाज के स्टीरियोटाइप रवैये को एक जोरदार पंच मारता है । जाहिर है कि यह एक बड़े बदलाव की शुरुआत है । इस बदलाव से हमारी दुनिया ज्यादा दिन तक अनछुई नहीं रह सकती ।

वहीं, बॉर्नविटा के विज्ञापन में एक माँ अपने बेटे को तैरना सिखाती है और जब बेटे के पैर में चोट लगने से प्लासटर चढ़ा होता है, तो उसकी तरह उसकी माँ भी अपने पैर को बांध लेती है, लेकिन उसकी ट्रेनिंग जारी रखती है । यह बहुत ही प्यारा और संवेदनशील विज्ञापन है ।

किसी भी देश की ताकत महिलाओं की शक्ति में छिपी है । सामाजिक विकास से लेकर आर्थिक उन्नति में महिलाओं का योगदान महत्त्वपूर्ण है । एक बच्चे को जन्म देने वाली ‘माँ’ से लेकर अंतरिक्ष तक पहुँचने वाली एस्ट्रोनॉट के रूप में स्त्री शक्ति का अंदाजा लगा पाना कोई मुश्किल कार्य नहीं है । इसलिए Women in advertisement |Hindi| विज्ञापन में भी महिलाओं की स्थिति को समझने की आवश्यकता है तथा उन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है । तभी समाज में फैली कुरीतियों का भी अंत होगा ।

Women in advertisement |Hindi| विज्ञापन में महिला को केवल मनोरंजन और सुंदरता का प्रतीक ही नहीं समझना चाहिए । उन्हें भी पुरुषों की ही भाँति इज्जत मिलनी चाहिए । तभी देश और समाज का विकास होगा । 

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