Is Honey safe for newborn babies? |Hindi| क्या शिशुओं को शहद देना सुरक्षित है?

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शहद स्वास्थ्य के लिए अत्यंत फायदेमंद माना जाता है । इसका स्वाद अत्यंत मीठा होता है । शहद में विटामिन ए, बी, सी, आयरन, कैल्शियम, सोडियम फॉसफोरस और आयोडीन पाया जाता है । रोज़ाना शहद का सेवन करने से शरीर में शक्ति, स्फूर्ति और ताज़गी बनी रहती है । इसके साथ ही हर तरह के रोगों से लड़ने की शक्ति भी मिलती है । अस्थमा के इलाज के लिए भी शहद का प्रयोग किया जाता है । इसके साथ ही रोज़ाना शहद का इस्तेमाल करने से चेहरे की झाइयाँ और मुँहासे भी खत्म हो जाते हैं । लेकिन सवाल यह कि Is Honey safe for newborn babies? / क्या शिशुओं को शहद देना सुरक्षित है?

शिशुओं को 1 साल से पहले बिल्कुल भी शहद नहीं देना चाहिए । 1 वर्ष से कम आयु के शिशु को शहद देने से इंफेंट बॉटुलिज़्म की समस्या हो सकती है । शिशु में बॉटुलिज़्म घातक समस्या होती है । इसके लिए क्लोस्ट्रीडियम बॉटुलिनम नामक बैक्टीरिया (जीवाणु) जिम्मेदार होता है । ये बैक्टीरिया मिट्टी और कुछ खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं, जिनमें से एक शहद भी है । बॉटुलिज़्म की समस्या जन्म के बाद 6 दिन के शिशु से लेकर 1 साल तक के बच्चे को हो सकती है । यह समस्या 6 सप्ताह से 6 महीने की उम्र वाले बच्चों को ज्यादा होती है । इसलिए डॉक्टर भी 1 साल से कम उम्र के शिशुओं को शहद न देने की सलाह देते हैं ।

शिशुओं में बॉटुलिज़्म के लक्षण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं –

  • सांस लेने में तकलीफ होना
  • कब्ज होना
  • पलकों का शिथिल होना या बंद होना
  • शिशु का सुस्त हो जाना
  • सिर पर नियंत्रण न होना
  • खाने – पीने में तकलीफ होना
  • रेस्पिरेटरी फेलियर
  • शरीर के निचले हिस्से में पैरालिसिस
  • अधिक थकान महसूस होना
  • चेहरे की मांसपेशियों का कमजोर दिखाई देना
  • हाथ, पैर तथा गर्दन की मांसपेशियों में कमजोरी दिखना

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भारत में कई परिवारों में शिशु के जन्म लेते ही उसे शहद चटाने का रिवाज़ है । मेरा मानना है कि हमें अपनी परम्परा को जरूर मानना चाहिए । लेकिन जहाँ बात अपने बच्चे की आती है वहाँ थोड़ी  एहतियात बरतने की जरूरत है । अपने शिशु चिकित्सकों की बात माननी चाहिए । माना कि इससे हमारी परम्परा की अवहेलना भले ही हो लेकिन हमें समय के साथ थोड़ा बदलाव तो लाना पड़॓गा । जरूरी नहीं कि कोई एक गलत हो तो सभी गलत हो जाएं । आखिर आपके बच्चे के स्वास्थ्य का सवाल है । आपका बच्चा स्वस्थ रहेगा तो कहीं न कहीं आप भी स्वस्थ और खुश रहेंगी ।

बच्चों को 1 साल के बाद आप कभी भी शहद दे सकती हैं । सही सलाह और उचित समय के बाद ही बच्चों को शहद देना चाहिए । इससे उन्हें कई फायदे हो सकते हैं । नीचे आपके बच्चों को शहद से मिलने वाले फायदे के बारे बताया जा रहा है ।

बच्चों को शहद से फायदे –

1) ऊर्जा देने के लिए – शहद में भरपूर मात्रा में ऊर्जा होती है । इससे बच्चा ऊर्जावान बना रहता है । इसके साथ ही वह खेलकूद में भी चुस्त और तंदरुस्त महसूस करता है । यह एक ऐसी बलवर्धक औषधि है जिसमें कम मात्रा में काफी विटामिन और मिनरल्स होते हैं । इसके अतिरिक्त इसमें कैल्शियम, कॉपर, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम और जिंक शामिल होते हैं ।  

2) खून की कमी – शहद आपके बच्चे के लिए बहुत लाभकारी है । यह खून की कमी को भी दूर करता है । यह आपके बच्चे के शरीर पर अलग – अलग तरह से असर डालता है । शहद और गुनगुने पानी का मिश्रण खून में होमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाता है ।

3) चीनी से ज्यादा फायदेमंद – शहद में ग्लूकोज और फ्रुक्टोज होते हैं जो बच्चों के लिए काफी फायदेमंद होता है । शहद मीठा तो होता है लेकिन इससे अधिक नुकसान नहीं होता है । इसे चीनी की जगह प्रयोग किया जा सकता है ।

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4) एंटीबैक्टीरियल और एंटीसेप्टिक – शहद का सेवन इतना लाभदायक है कि यह एंटीऑक्सीडेंट तत्वों की संख्या को बढ़ाता है । यदि किसी घाव पर शहद लगाएं तो घाव के अंदर का सारा बैक्टीरिया नष्ट हो जाता है ।

5) सर्दी ज़ुखाम में लाभकारी – यदि आपका बच्चा सर्दी ज़ुखाम से परेशान है तो आप रोज सुबह उसे शहद का सेवन करा सकती हैं । काली मिर्च, शहद और हल्दी का मिश्रन बना कर सेवन करने से बच्चे को आराम मिलता है । शहद त्वचा की एलर्जी को दूर करने में भी लाभदायक है ।

6) पाचक के रूप में – शहद बच्चे के पेट के लिए अत्यंत फायदेमंद होता है । यह कब्ज, पेट फूलना और गैस तीनों के लिए रामबाण होता है ।

7) संक्रमण से लड़ने में उपयोगी – आपके बच्चे की सिर और त्वचा के लिए भी शहद बहुत लाभदायक होता है । शहद का सेवन करने से बच्चों को नींद भी अच्छी आती है । यह कई स्तरों पर संक्रमण से लड़ता है । यह भोजन में पैदा होने वाले जीवाणुओं को समाप्त कर सकता है ।  

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उपर्युक्त बातों का ध्यान रखें तथा 1 साल से छोटे बच्चों को शहद का सेवन ना करवाएँ । वास्तव में शहद का प्राकृतिक स्वरूप जटिल होता है, इसलिए बच्चों का कोमल पेट इसे पचा नहीं पाता है । यदि आप बच्चों को ताज़ा पेड़ से उतरा हुआ शहद देते हैं तो वह भी उनके लिए खतरनाक होता है । उनके पेट में प्राकृतिक अवस्था में भी शहद नहीं पचता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सलाह दी है कि शहद को पानी, भोजन और शिशु सूत्रों में नही जोड़ना चाहिए । यह एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों को नहीं देना चाहिए । बच्चों के लिए शहद अच्छा है । परंतु जब तक बच्चा एक वर्ष का ना हो जाए तब तक बच्चे को शहद नहीं देना चाहिए ।

यह सवाल Is Honey safe for newborn babies? / क्या शिशुओं को शहद देना सुरक्षित है? अत्यंत सार्थक है । इसपर विचार अवश्य करें । मुझे उम्मीद है इस सार्थकता भरे सवाल के उत्तर से आपको अवश्य मदद मिल गई होगी । मैंने पूरी कोशिश की है कि आपको मेरे इस लेख से अवश्य मदद मिले ।

आपको मेरा लेख Is Honey safe for newborn babies? / क्या शिशुओं को शहद देना सुरक्षित है?  कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएँ । इसके साथ ही आप यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वह भी दे सकते हैं ।

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Tips for flying with a newborn |Hindi| एक नवजात शिशु के साथ उड़ान भरने के लिए टिप्स

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Flying with Baby

पहली बार माँ बनने का अनुभव अत्यंत सुखद होता है । एक बच्चा हमारे जीवन में खुशियों के साथ – साथ कई अनुभव भी लेकर आता है । नई माताओं के सामने कई नई परिस्थितियाँ आती हैं जिसका अनुभव उन्हें पहली बार करना पड़ता है । छोटी – सी भी गलती बच्चे के लिए बहुत भारी पड़ सकती है । इसलिए माँ को हर चीज का ध्यान बहुत अच्छी तरह रखना पड़ता है । इसके साथ ही यदि आप नवजात शिशु के साथ उड़ान भरना चाहती हैं तो यह काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है । यह जितना एक माँ के लिए चुनौतीपूर्ण होता है उतना ही परिवारवालों तथा यात्रियों के लिए भी । आपका बच्चा कभी भी रो सकता है या आपको कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है ।  हाँलाकि, थोड़ी अग्रिम तैयारी के साथ यह बहुत आसान तथा सुखद हो सकता है । इसलिए नई माताओं को उड़ान से पहले कुछ जरूरी बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए । जिससे आपका और बाकी यात्रियों की यात्रा आसान हो सके । नवजात शिशु के साथ उड़ान के तनाव को कम करने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं । आइए जानते हैं Tips for flying with a newborn / एक नवजात शिशु के साथ उड़ान भरने के लिए टिप्स –

Airport
  • जन्म प्रमाण – पत्र ना भूलें । एयरपोर्ट/ हवाईअड्डे में प्रवेश करने के समय तथा बोर्डिंग पास बनवाते समय इसकी आवश्यकता पड़ती है । यदि आप किसी कारण वश इसे भूल जाती हैं तो आपको यात्रा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी । इसलिए यात्रा के समय आपके बच्चे का जन्म प्रमाण – पत्र अत्यंत आवश्यक है ।
  • स्मार्ट आरक्षण करें । कहने का तात्पर्य यह है कि पहले से फ्लाइट की बुकिंग कर लें । इससे आपको आपकी सुविधा के अनुसार सीट मिल जाएगी और आप आराम से अपनी यात्रा कर सकेंगी । एक सीधी उड़ान / डाइरेक्ट फ्लाइट बुक करें जिससे बच्चा या आपको ज्यादा तकलीफ ना हो । यदि आप डाइरेक्ट फ्लाइट नहीं बुक करती हैं तो तरह-तरह की असुविधाओं से आपको जुझना पड़ सकता है । सबसे पहले तो आपको बच्चे के साथ टर्मिनल बदलने में असुविधा हो सकती है । इसके बाद बार-बार एक जगह से दूसरी जगह जाने से बच्चा भी चिड़चिड़ा – सा वर्ताव कर सकता है । इसलिए ऐसी तमाम असुविधाओं का सामना करने से बचना चाहिए ।
  • अपनी फ्लाइट में प्रवेश करने से पहले शौचालय का प्रयोग कर लें । जब आप छोटे बच्चे के साथ उड़ान भर रहीं हैं तो आप बार-बार शौचालय नहीं जा सकती हैं । जरूरी नहीं कि आपको हर बार एक ही तरह की सुविधा उपलब्ध हो । इसलिए पहले ही हर कार्य से निवृत्त हो जाना सही है ।
baby on flight
  • बच्चे की दवाइयाँ न भूलें । बच्चे के साथ उड़ान भरते समय उसकी हर तरह की दवाइयाँ रखना अत्यंत आवश्यक है । शिशुओं को अचानक से कुछ भी हो सकता है जैसे उल्टी, बुखार, पेट दर्द, दस्त इत्यादि । उसकी एक अलग से फर्स्ट ऐड बॉक्स ही बना लें ।
  • रूई या कॉटन रखना ना भूलें । उड़ान के समय अपने साथ कॉटन जरूर रखें । विमान के चढ़ने और उतरने के समय हवा का दबाव धीरे – धीरे कम होने लगता है । इस कारण कानों में बहुत दर्द या यूँ कहें कि अजीब – सी जलन होने लगती है । बड़॓ तो इसे झेल लेते हैं लेकिन छोटे बच्चों को काफी तकलीफ होती है । इसीलिए वे रोते हैं तथा उनका व्यवहार चिड़चिड़ा – सा हो जाता है । उन्हें इस तकलीफ से बचाने के लिए डॉक्टर्स उनके कानों में कॉटन लगाने का सुझाव देते हैं । कॉटन लगाकर रखने से उनके कानों में जलन कम होती है । इसके साथ ही उड़ान के समय आप अपने बच्चे को स्तनपान कराएँ या बॉटल से दूध पिलाएँ । इससे आपके बच्चे को कोई तकलीफ नहीं होगी । यदि आपका बच्चा थोड़ा बड़ा है तो आप उसे लॉलीपॉप इत्यादि भी खिला सकती हैं । इससे कानों में तकलीफ नहीं होती है ।
  • यात्रा के लिए बच्चे के उपकरण जैसे स्ट्रॉलर इत्यादि किराए पर लें । यदि आप किराए पर स्टॉलर ले लेती हैं तो आपको लम्बे समय तक बच्चे को गोद में नहीं लेना पड़॓गा । इसके साथ ही अन्य जरूरी उपकरण भी आप किराए पर ले सकती हैं । इससे आपकी यात्रा सुखद हो जाएगी ।
  • बच्चे का जरुरी सामान ज्यादा से ज्यादा अपने साथ रखें । जैसे उसके डायपर्स, उसके कपड़॓, बेबी वाइप्स इत्यादि । हो सके तो उसका एक अलग बैग तैयार कर लें । पैकिंग के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि सारा सामान क्रमबद्ध हो । बच्चे का सामान सुविधाजनक तरीके से रखने से जरुरत के समय जल्द मिल जाएगा । छोटे बच्चे कई बार उल्टियाँ कर देते हैं, पॉटि कर देते हैं । इस दौरान आपको उनके कपड़॓ तथा डायपर्स बदलने पड़ सकते हैं । इसके साथ ही बेबी वाइप्स की भी आवश्यकता पड़ सकती है । यदि आप सारी चीजें क्रमबद्ध रखेंगी तो आपको जरूरत के समय तुरंत मिल जाएंगी । इसलिए हर एक चीज सही तरीके से क्रमबद्ध रखना अत्यंत आवश्यक है ।
  • बच्चे के साथ यात्रा के दौरान उसके खाने का एक अलग डब्बा जरूर रखें । तरह – तरह के फल जैसे केला, संतरा, सेब इत्यादि जरूर रखें । हर वो फल जो आसानी से मसल कर आप अपने बच्चे को खिला सकें रख लें । अलग से खाने का डब्बा रखने से उड़ान के समय आपको अपने बच्चे के साथ कोई परेशानी नहीं होगी । जरूरत के समय डब्बा तुरंत आपके हाथ में होगा ।
  • ध्यान रखें कि सफर 6 घंटे से ज्यादा लम्बा ना हो । कुछ समय के गैप के बाद ही दूसरी फ्लाइट हो । जिस तरह सफर के दौरान हम थक जाते हैं वैसे ही बच्चे भी थक जाते हैं । यदि सफर ज्यादा लम्बा होगा तो बच्चे परेशान होकर रोने लगेंगे । इससे कहीं – न – कहीं हम तथा बाकि यात्री भी परेशान हो सकते हैं ।

मैंने Tips for flying with a newborn / एक नवजात शिशु के साथ उड़ान भरने के लिए टिप्स से सम्बंधित जरूरी जानकारियाँ दी हैं । बरहलाल मुझे उम्मीद है आपको इससे मदद अवश्य मिलेगी ।

Tips for flying with a newborn / एक नवजात शिशु के साथ उड़ान भरने के लिए टिप्स सहयोगी लेख है । आपको मेरा लेख कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में लिखकर अवश्य बताएँ । इसके साथ ही आप यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वह भी दे सकते हैं ।

Jaundice in babies | Hindi | नवजात शिशुओं में पीलिया

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पीलिया किसी भी उम्र में हो सकता है । पीलिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें आँखें और त्वचा पीली हो जाती हैं । छोटे बच्चों में पीलिया होना एक सामान्य स्थिति है । अधिकांश नवजात शिशुओं को जन्म के बाद ही पीलिया हो जाता है । इससे कई माता – पिता अत्यंत घबरा जाते हैं । यह बीमारी नवजात शिशुओं के जन्म के एक – दो सप्ताह के बाद ही ठीक हो जाती है । यदि यह एक – दो सप्ताह में ठीक ना हो तो इसका सही समय पर इलाज करवाना बहुत जरूरी है । आज मैं आपको Jaundice in babies / नवजात शिशुओं में पीलिया के लक्षण तथा उसके उपायों के बारे में बताऊँगी ।

सबसे पहले तो यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि नवजात शिशुओं में जन्म के समय पीलिया होता क्यों है ?  शिशुओं में बिलीरूबिन की मात्रा बढ़ जाने से पीलिया हो जाता है । यह अधिकांश उन बच्चों में पाया जाता है जिनका जन्म समय से पहले हो जाता है । उनके अंग बिलीरूबिन को कम करने के लिए सही से विकसित नहीं हुए होते हैं । यह शिशु के जन्म के 24 घंटे के बाद नजर आता है । उसके बाद यह दूसरे या तीसरे दिन अधिक बढ़ जाता है । आमतौर पर एक सप्ताह तक शिशुओं में पीलिया रहता है ।

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Jaundice in babies / नवजात शिशुओं में पीलिया अत्यंत आम है । इसका यह मतलब नहीं कि सभी शिशुओं को जन्म के बाद पीलिया हो जाता है । यह 10 में से 6 नवजात शिशुओं को ही होता है । कुछ बच्चों का जन्म समय से पहले अर्थात् 36 वें या 37 वें सप्ताह में हो जाता है । उनमें पीलिया ज्यादा होने की सम्भावना रहती है । इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है । इसका सही तरीके से इलाज करवाने से यह ठीक हो जाता है । समय से पहले जन्में बच्चों में पीलिया कई कारणों से होता है । आइए जानते हैं Jaundice in babies / नवजात शिशुओं में पीलिया के कारण –

1) अविकसित लिवर – शिशुओं के शरीर में बिलीरूबिन की मात्रा अधिक होने से पीलिया होने की सम्भावना अधिक होती है । लिवर खून से बिलीरूबिन के प्रभाव को दूर करने का काम करता है । नवजात शिशुओं का लिवर ठीक से विकसित नहीं होता है । इसलिए वह बिलीरूबिन को फिल्टर नहीं कर पाता है । यही कारण है कि शिशुओं में इसकी मात्रा बढ़ जाती है तथा उन्हें पीलिया हो जाता है ।

2) प्रीमेच्योर बेबी – प्रीमेच्योर बेबी या समय से पहले जन्मे शिशुओं को पीलिया होने का खतरा ज्यादा रहता है । नवजात शिशुओं का लिवर अविकसित होने के कारण उन्हें पीलिया हो जाता है ।

3) ठीक से स्तनपान न करना – जन्म के शुरुआती दिनों में शिशुओं को ठीक से स्तनपान करना अत्यंत आवश्यक है ।  यदि शिशु को माँ का दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल रहा हो तो वह पीलिया से ग्रसित हो सकता है । शिशु का ठीक से स्तनपान न करना पीलिया होने का प्रमुख कारण है । इससे उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता है । इसके लिए अपने चिकित्सक या स्तनपान विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए । विशेषज्ञ आपको दूध पिलाने की उचित विधि बतलाते हैं । इसके साथ ही स्तनपान में वृद्धि होने के उपाय भी बतलाते हैं । पर्याप्त दूध प्राप्त होने से पीलिया होने की सम्भावना कम होगी ।  

4) माँ के दूध के कारण – शुरुआती कुछ हफ्तों में स्तनपान करने वाले बच्चों में माँ के दूध की वजह से भी पीलिया हो जाता है । माँ के दूध में ऐसे तत्त्व पाए जाते हैं, जो बिलीरूबिन को रोकने की प्रक्रिया में बाधा पहुँचाते हैं । शिशुओं में Bilirubin / पित्तरंजक का स्तर बहुत अधिक हो जाता है । ऐसे में चिकित्सक आपको कुछ दिनों के लिए स्तनपान रोकने की सलाह दे सकते हैं । जब Bilirubin / पित्तरंजक का स्तर अपनी सामान्य स्थिति में आ जाए तो आप शिशु को स्तनपान करा सकती हैं । 

5) रक्त सम्बंधी कारण – जब माँ और भ्रूण का रक्त समूह अलग – अलग होता है । ऐसी अवस्था में माँ के शरीर से कुछ एंटीबॉडीज निकलते हैं । ऐसे एंटीबॉडीज भ्रूण की लाल रक्त्त कोशिकाओं को मार देते हैं । इसके साथ ही ये शरीर में बीलिरूबिन की मात्रा को बढ़ाते हैं । जिससे शिशु पीलिया के साथ जन्म लेता है ।

6) अन्य कारण – इसके अलावा पीलिया संक्रमित बच्चे के पाचन तंत्र में किसी समस्या की वजह से भी पीलिया हो सकता है । शिशु का लिवर ठीक से काम न करने, बैक्टीरियल या वायरल इंफेक्शन व एंजाइम की कमी के कारण भी बच्चे को पीलिया हो सकता है ।

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नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण –

पीलिया ज्यादा खतरनाक बीमारी नहीं है । यदि पीलिया के लक्षण सही समय पर पहचान कर सावधानियाँ बरत ली जाएं तो इससे बचा जा सकता है । आइए जानते हैं शिशुओं में पीलिया होने के लक्षण –

  • पीलिया होने का सबसे पहला लक्षण है नवजात शिशु के शरीर, चेहरे तथा आँखों का रंग पीला पड़ जाना । शिशु को पीलिया होने पर सबसे पहले उसके चेहरे पर पीलापन दिखेगा । उसके बाद उसकी छाती, पेट, हाथों तथा पैरों पर पीलापन आने लगेगा । इसके साथ ही शिशु की आँखों का सफेद हिस्सा भी पीला पड़ने लगता है ।

इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी हैं । उनके संकेतों से शिशु को डॉक्टर के पास ले जाने की आवश्यकता पड़ती है । जैसे –

  • यदि शिशु की भूख खत्म हो जाए ।
  • यदि आपका शिशु बिल्कुल सुस्त दिखाई देने लगे ।
  • यदि आपका शिशु बहुत रोता हो ।
  • यदि आपके शिशु का बुखार 100 डिग्री से ज्यादा हो ।
  • यदि आपके शिशु को उल्टी – दस्त दोनों हो जाएं ।
  • यदि आपके शिशु के पेशाब का रंग गहरा पीला तथा मल का रंग फीका हो जाए ।
  • यदि पीलिया 14 दिन तक ठीक न हो ।
  • यदि शिशु को सात दिन का हो जाने के बाद पीलिया हुआ हो तो चिंतनीय विषय बन सकता है ।
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उपाय –

यदि आपके शिशु का पीलिया ज्यादा बढ़ जाए तो आप बिल्कुल ना घबराएं । उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं । डॉक्टर शिशु की स्थिति के अनुसार इलाज करेंगे । ऐसे में डॉक्टर नीचे बताए गए तरीकों से शिशु का इलाज कर सकते हैं –  

फोटोथेरेपी ( लाइट थेरेपी) – शिशुओं के पीलिया को फोटोथेरेपी द्वारा ठीक किया जाता है । इस थेरेपी के दौरान शिशु को रोशनी के नीचे बिस्तर पर लिटाया जाता है, जो वेवलेंथ किरणें छोड़ती हैं । इस दौरान शिशु की आँखों को बचाने के लिए उसके ऊपर एक पट्टी रख दी जाती है । हर तीन – चार घंटों में आधे घंटे के लिए यह प्रक्रिया बंद की जाती है । जिससे शिशु को आराम मिल सके । इस आधे घंटे में माँ अपने शिशु को दूध पिला सकती है । इस दौरान शिशु को हाइड्रेट रखने के लिए स्तनपान अत्यंत आवश्यक है ।  

इम्यूनोग्लोबुलीन इंजेक्शन – यह इंजेक्शन तब लगता है जब शिशु और माँ का ब्लड ग्रुप भिन्न होने से उसे पीलिया हो जाता है । यह इंजेक्शन शिशु के शरीर में एंटीबॉडीज के स्तर को कम करता है । इससे पीलिया कम होने लगता है ।

शिशु का रक्त बदलना – यह उपचार तब अपनाया जाता है जब अन्य कोई उपचार काम नहीं करता हो । इस उपचार में बार – बार डोनर के रक्त के साथ शिशु का रक्त बदला जाता है । यह तब तक किया जाता है जब तक पूरे शरीर से बिलीरूबिन की मात्रा कम नहीं हो जाती है ।

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इसके अलावा कुछ घरेलू उपाय भी हैं । जैसे अपने शिशु को कुछ देर के लिए धूप में रखें । समय – समय पर बच्चे को स्तनपान कराते रहें । माँ का दूध शिशु के लिए अत्यंत फाएदेमंद होता है । यदि आपका शिशु ठीक से स्तनपान नहीं कर पा रहा है तो डॉक्टर की स्लाह लेकर कोई सप्लीमेंट्स भी दे सकते हैं ।

इस लेख में मैंने आपको Jaundice in babies / नवजात शिशुओं में पीलिया होने से सम्बंधित जरूरी जानकारियाँ देने की कोशिश की है । मुझे उम्मीद है आपको इससे मदद अवश्य मिलेगी ।

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Diaper rash in infants |Hindi| शिशुओं में डायपर रैश

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आज के इस बदलते समय में मनुष्य नए – नए तकनीकी साधनों का प्रयोग करने लगा है । आज विज्ञान इतना आगे बढ़ चुका है कि मनुष्य का जीवन अत्यंत आरामदायक हो चुका है । बच्चे हों या बूढ़॓ सबके लिए बाज़ार में ज़माने के अनुसार नई चीजें आ चुकी हैं । डायपर भी उन्हीं में से एक है । आजकल डायपर का इस्तमाल करना आम हो चुका है । डायपर की वजह से माता – पिता तथा शिशु दोनों को सुविधा रहती है । कई बार माता – पिता इतने व्यस्त हो जाते हैं कि शिशुओं का डायपर बदलना भूल जाते हैं । इसी वजह से उनके शिशुओं को रैश भी हो जाते हैं । उन्हीं सब कारणों और उनके उपायों के बारे में मैं आपलोगों को बताऊँगी । तो आइए जानते हैं Diaper rash in infants/ शिशुओं में डायपर रैश ।

शिशुओं की त्वचा अत्यंत नाज़ुक और संवेदनशील होती है । छोटी सी छोटी लापरवाही उनके त्वचा को नुकसान पहुँचा सकती है । इसलिए उनका ध्यान अच्छी तरह रखना पड़ता है । बच्चों में सबसे ज्यादा परेशानी Diaper rash की वजह से होती है । Diaper rash in infants/ शिशुओं में डायपर रैश के बारे में जानने से पहले निम्न बातों को जानें । सर्वप्रथम आपको यह जानने की आवश्यकता है कि डायपर रैश क्या होता है ?

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डायपर रैश एक तरह की त्वचा की जलन होती है । ये बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन की वजह से होते हैं । यदि आपके शिशुओं के गुप्तांगों में लाल चकत्ते दिखाई दें तथा वहाँ जलन हो । तो आप समझ लें कि आपके बच्चे को डायपर रैश हुआ है । इसके अतिरिक्त आपके शिशु के डायपर पहनने वाली जगह की त्वचा रूखी – सी हो गई हो । इसके साथ ही वहाँ इतना जलन हो कि बच्चा दिन भर रोते रहे । ऐसी सम्भावनाओं को देखते हुए आप जान सकते हैं कि आपके शिशु को डायपर रैश हुआ है । अब बात करते हैं यह समस्या होती क्यों है ? इसके कारण क्या हैं ?

Cause of Diaper Rash / कारण – डायपर रैश के कई कारण हैं -

1) यदि शिशु अत्यधिक समय तक एक ही डायपर में रहे तो यह समस्या ज्यादा हो सकती है । शिशु के डायपर को हर 2 – 3 घंटों में बदलते रहना चाहिए । यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो डायपर और त्वचा में स्थित नमी और (Bacteria) जीवाणु से शिशु को डायपर रैश होने की सम्भावना रहती है । गीले और गंदे डायपर से शिशु की त्वचा आसानी से कमजोर हो जाती है । उन्हें खुजली भी शुरु हो जाती है । अत: उस स्थान पर आपके बच्चे को जलन और असहज महसूस होता है ।

2) यदि आपके शिशु को दस्त हुआ हो तो उस समय भी डायपर रैश होने की सम्भावना अधिक होती  है । अत: उस समय कोशिश करें कि आपके शिशु के डायपर पहनने वाली जगह सूखी रहे ।

3) खान – पान में बदलाव और (antibiotics) एंटीबायोटिक्स के कारण भी रैश हो सकते हैं । जब बच्चे के खाने में कोई नई चीज जुड़ती है तो उससे भी Rash होने की सम्भावना रहती है । छोटे बच्चों को किसी भी तरह का अचानक बदलाव सहन नहीं होता है । जब बच्चे बीमार हों उन्हें जल्द एंटीबायोटिक्स नहीं देना चाहिए । इससे बच्चे को डायरिया होने की सम्भावना रहती है । यदि किसी वजह से उन्हें खाना भी पड़॓ तो कुछ बच्चों को उससे रैशेज की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

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4) अत्यधिक टाइट डायपर पहनने से भी यह समस्या हो सकती है । डायपर खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए । जैसे आपके बच्चे का वजन कितना है या उसकी उम्र कितनी है । आप कोशिश करें कि अपने बच्चे को एक साइज़ बड़ा डायपर पहनाएँ । इससे उसे रैशेज होने की सम्भावना कम होगी । इन सब बातों का ध्यान रखकर डायपर खरीदना चाहिए ।

5) यदि आपके शिशु की त्वचा अत्यंत संवेदनशील है तो इस कारण से भी डायपर रैश हो सकता है । इसलिए बिना जाँच किए कोई भी लोशन इत्यादि अपने बच्चे की त्वचा पर न लगाएं ।

6) डायपर के ब्रैंड या disposal baby wipes में बदलाव के कारण भी डायपर रैश होने की सम्भावना होती है । अपने बच्चे के लिए किसी एक ही अच्छे ब्रैंड की वस्तुओं का प्रयोग करें । बार – बार प्रोडक्ट्स बदलने से बच्चे को चकत्ते निकल सकते हैं । अपने बच्चे के डिटर्जेंट, साबुन, क्रीम, लोशन, पावडर इत्यादि किसी भी चीज में बदलाव ना करें । इससे भी डायपर रैश हो सकता है ।

अब बात करते हैं डायपर रैश से बचने के कुछ आसान से उपाय । जिनका पालन करने से आपके बच्चे की त्वचा में होने वाले डायपर रैश की सम्भावनाओं को आसानी से कम किया जा सकता है ।

Remedies / उपाय – डायपर रैश से बचने के कई उपाय हैं -

1) बच्चे के डायपर को समय-समय पर बदलते रहें । कई लोग अपने आराम की खातिर दिन भर एक ही डायपर में अपने बच्चे को रख देते हैं । इससे बच्चे का डायपर भर जाता है । अत: गंदगी तथा गीलेपन की वजह से शिशु को लाल चकत्ते निकल जाते हैं । इसलिए माता – पिता को समय के अनुसार बच्चे का डायपर बदल देना चाहिए । यूं तो अच्छे ब्रैंड के डायपर कई घंटों तक पहनाकर रखा जा सकता है । लेकिन फिर भी जब बात अपने बच्चे की सुरक्षा की होती है तो अतिरिक्त ख्याल रखना आवश्यक है । 

2) डायपर बदलते समय बच्चे के कूल्हों और गुप्तांगों को अच्छी तरह गुनगुने पानी से साफ करें । ध्यान रहे साफ करने वाला कपड़ा भी अच्छी तरह धुला हुआ हो । आप साफ करने के लिए अच्छे ब्रैंड के Baby wipes का भी इस्तमाल कर सकते हैं । इसके बाद साफ तौलिए से तुरंत सूखा भी दें ।

3) बच्चे को ज्यादा टाइट डायपर ना पहनाएँ । अत्यधिक टाइट डायपर के कारण शिशु के निचले हिस्से की त्वचा को हवा नहीं लग पाती है । इससे उनकी त्वचा नम पड़ जाती है और डायपर रैश होने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं । इसके साथ ही टाइट डायपर से जाँघों में रगड़ भी लग सकती है ।

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4) एक अच्छे ब्रैंड के डायपर का ही इस्तमाल करें । छोटे बच्चों का ख्याल बहुत सही तरीके से रखना चाहिए । बच्चे के जन्म के समय ही यह तय कर लेना चाहिए कि कौन सा डायपर उसके लिए सही है । इसके लिए आपको यह ध्यान रखना होगा कि कौन से डायपर में डबल लीक गार्ड हो । डबल लीक गार्ड वाले डायपर 12 घंटों के उपयोग के बाद भी रिसाव से 100% सुरक्षा प्रदान करते हैं । वैसे डायपर्स में एलोवेरा बेबी लोशन भी मौजूद होते हैं । ऐसे डायपर्स बच्चे की त्वचा को डायपर रैशेज और जलन से बचाव में मदद कर सकते हैं । एक अच्छे ब्रैंड के डायपर्स के ऊपरी भाग कॉटन से बने होते हैं और काफी आरामदायक होते हैं । ऐसे डायपर हर साइज तक उपलब्ध होते हैं । जरूरत के अनुसार इसके छोटे और बड़॓ पैकेट भी उपलब्ध होते हैं ।    

5) डायपर बदलने से पहले अपने हाथों को जरूर धोएं । हम दिन भर अपने कामों में अत्यंत व्यस्त रहते हैं ।  इसलिए हमें ध्यान ही नहीं रहता है कि हमारे हाथों में कितने किटाणु जम गए हैं । ऐसे में यदि हम बिना हाथ धोए अपने बच्चे का डायपर बदलेंगे तो बच्चे को इंफेक्शन हो सकता है । इसलिए आवश्यक है आप अपने बच्चे को साफ हाथों से ही छूएं ।

6) जब बच्चे को डायपर रैश हो जाए तो डॉक्टर द्वारा दिए गए (prescribed medicated lotion) लोशन को ही लगाएँ । कोई भी बाज़ार के (products) उत्पादों का न इस्तमाल करें । इसके साथ ही आप नारियल तेल का भी इस्तमाल कर सकते हैं । नारियल का तेल आपके बच्चे के शरीर पर फंगस इंफेक्शन तथा यीस्ट इंफेक्शन होने से रोकता है । इससे आपके बच्चे को राहत महसूस होगी । आप दिन भर में कई बार नारियल तेल डायपर एरिया में लगा सकते हैं।

7) कई डॉक्टर पेट्रोलियम जेली का इस्तमाल करने के लिए कहते हैं । पेट्रोलियम जेली बच्चे की रैश वाली त्वचा को मुलायम रख सकती है । लेकिन इसका इस्तमाल बिना डॉक्टर की सलाह लिए बगैर ना करें । इसमें कई तरह के (Chemicals) रासायनिक पदार्थ होते हैं जो आपके बच्चे की त्वचा के लिए सही नहीं है ।

8) अपने शिशु को नहलाते समय सफाई पर विशेष ध्यान दें । एक अच्छे ब्रैंड के साबुन और शैम्पू का इस्तमाल करें । इसके साथ ही बच्चे के शरीर के हर एक कोने को अच्छे से साफ करें । नहलाते समय डेटॉल या कोई भी एंटीसेप्टिक लिक्विड का इस्तमाल करें । इससे बच्चे के शरीर में कोई भी इंफेक्शन या बीमारी जल्दी नहीं फैलेगी । इसके पश्चात् साफ तैलिया से बच्चे के शरीर को पोछ दें ।

9) बच्चे के नाज़ुक अंगों को थोड़ी देर के लिए खुली हवा लगने दें । दिनभर पसीने की वजह से भी (rashes) चकत्ते हो सकते हैं । इसके साथ ही खुली हवा लगने से बच्चे को आराम भी महसूस होगा ।

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10) छोटे बच्चे को धीरे – धीरे (Solid materials) ठोस पदार्थों का सेवन करवाएँ । एकाएक ठोस पदार्थ खिलाने से उनका पॉटी (मल) में बदलाव आने लगता है । इस बदलाव के कारण मल कभी कम होता है तो कभी बार–बार । बार-बार मल होने की वजह से रैशेज होने की सम्भावना रहती है । इसलिए बच्चे को ठोस पदार्थों का सेवन एकाएक ना करवाएँ ।

11) अपने शिशु के कपड़ों को अलग से हल्के डिटर्जेंट में धोएँ । ऐसा करने से कोई भी रसायन उसके कपड़ों में नहीं रहेंगे । रसायन नहीं होंगे तो उन्हें किसी भी प्रकार के रैशेज होने की सम्भावना कम होगी ।  

अंत में मैं यही कहना चाहती हूँ कि किसी भी घरेलू उपक्रमों का उपाय बिना डॉक्टर की सलाह लिए बगैर ना करें । छोटे बच्चे अत्यंत नाज़ुक होते हैं । उनपर किसी भी तरह का प्रयोग ना करें जिससे बाद में उन्हें तकलीफ हो । अत: मैंने जो Diaper rash in infants/ शिशुओं में डायपर रैश के कारण और उपाय बताए हैं उससे आपको अवश्य मदद मिलेगी ।

आपको मेरा लेख Diaper rash in infants/ शिशुओं में डायपर रैश कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएँ । इसके साथ ही आप यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वह भी दे सकते हैं ।

10 Tips to control babies anger |Hindi| बच्चों के गुस्से को नियंत्रित करने के 10 उपाय

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क्रोध एक सामान्य मानवीय भावना है। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि दो महीने की उम्र के बच्चे भी क्रोध प्रदर्शित करते हैं । क्रोध किसी भी उम्र के बच्चे में पाया जाता है । जब बच्चों की जरूरतें पूरी नहीं होती है तो वे अलग-अलग तरीके से अपने क्रोध को प्रकट करते हैं । जिससे लोग उनपर ध्यान दें और उनकी बात मान जाएं । बच्चे जब थोड़॓ बड़॓ होते हैं तो उनमें ‘self ‘ / ‘स्व’ की भावना विकसित हो जाती है । वे केवल अपने बारे में सोचने लगते हैं । वे तरह-तरह से अपना क्रोध दर्शाते हैं । वे अपना क्रोध Desperation/ हताशा, Disregard/ अवहेलना या Anger/ गुस्से के रूप में व्यक्त करते हैं । आपके इन्हीं परेशानियों को दूर करने के लिए मैं आपके समक्ष कुछ आसान से 10 Tips to control babies anger/बच्चों के गुस्से को नियंत्रित करने के 10 उपाय प्रस्तुत करूँगी । जिसे अपनाकर आप अपने बच्चे के गुस्से पर नियंत्रण पा सकते हैं ।

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गुस्सा करना बच्चे के सेहत के लिए अत्यंत नुकसानदायक होता है । अक्सर बच्चे रोकर, जमीन पर लोटकर, घर के सामानों को फेंककर अपना गुस्सा प्रदर्शित करते हैं । सार्वजनिक स्थलों पर जब बच्चे ऐसा करते हैं तो माता-पिता काफी परेशान हो जाते हैं । किसी भी माता – पिता के लिए उनके बच्चे का भविष्य बहुत बड़ी चुनौती होती है । यदि उनका बच्चा बात-बात पर क्रोधित होता है तो उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है । उन्हें बस एक ही चिंता सताते रहती है कि वे अपने बच्चे के इस क्रोध करने की प्रवृत्ति को कैसे सुधारें । ऐसे में उन्हें कुछ समझ नहीं आता है कि वे अपने बच्चे के इस व्यवहार के लिए क्या करें । बच्चों में गुस्सा प्रकट करने की यह आदत बहुत आम है । एक निर्धारित उम्र के बच्चों में यह प्रवृत्ति आ जाती है । लेकिन आप इससे बिल्कुल भी ना घबराएँ । आइए बात करते हैं 10 Tips to control babies anger/बच्चों के गुस्से को नियंत्रित करने के 10 उपाय –

  1. स्वयं शांत रहें –

जब भी आपका बच्चा गुस्सा करे सबसे पहले आप स्वयं शांत रहें । जब तक आप में संयम नहीं रहेगा आपका बच्चा भी शांत नहीं होगा । बच्चे हर चीज अपने माता- पिता से ही सीखते हैं । यदि उसके साथ आप भी गुस्सा करेंगे तो उसमें भी कभी संयम की भावना नहीं आएगी । आज के इस भागदौड़ वाली ज़िंदगी में चारों तरफ परेशानियाँ ही हैं । आजकल प्राय: माता-पिता working/ कामकाजी हैं । दिन भर की थकान के बाद अभिभावक प्राय: अपने बच्चों की किसी गलती पर नाराज होकर चिल्ला देते हैं । इसतरह का वर्ताव सरासर गलत है । आपको ऐसा करते देखकर आपका बच्चा भी यही सिखेगा । वह भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करने लगेगा ।

screaming baby
smiling baby
  1. ध्यान भटका दें –

जब आपका बच्चा क्रोधित हो तुरंत उसका ध्यान भटकाने की कोशिश करें । उसके साथ दूसरी बातें करें । कई बार चीजें नहीं मिलने पर बच्चे रोने तथा चिल्लाने लगते हैं । यदि हम उनका ध्यान भटका दें तो वे बहुत ही आसानी से शांत हो जाएंगे । इसके साथ ही उनका क्रोध भी गायब हो जाएगा ।

  1. भरपूर समय दें –

अपने बच्चे को भरपूर समय दीजिए । कई बार बच्चे बड़ों का ध्यान खींचने के लिए भी गुस्सा करने लगते हैं । जब लोग उनपर ध्यान नहीं दे रहे होते हैं तब वे गुस्सा दिखाकर लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं । इसलिए जरूरी है कि अपने बच्चे को भरपूर समय दिया जाए । उसे यह न लगे कि उसपर कोई ध्यान नहीं देता है ।

Family time with baby
  1. हिंसक प्रवृत्ति से बचें –

अपने बच्चे पर किसी भी कीमत पर हाथ मत उठाइए । बच्चों का हृदय कोमल होता है । मारने – पीटने से वे हिंसक प्रवृत्ति के बन जाते हैं । वे कभी भी आपकी इज़्ज़त नहीं करेंगे बल्कि आपके प्रति उनके मन में डर पैदा हो जाएगा । अपनी छोटी-छोटी गल्तियों को आपसे छुपाने लगेंगे । फलस्वरूप आपके ऐसे वर्ताव से उनके दिमाग पर बुरा असर पड़॓गा ।

Playing kids
  1. शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान दें –

अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा Physical activities/ शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रेरित करें । उनसे रोजाना व्यायाम करवाएँ । ज्यादा से ज्यादा खेल-कूद करवाएँ । Sports/ खेल – कूद या exercise/ व्यायाम करने वाले बच्चों को गुस्सा कम आता है । कुछ बच्चे दिन- भर टीवी या मोबाइल में लगे रहते हैं । इससे उनका दिमाग कभी भी विकसित नहीं होगा । इसलिए जरूरी है उनसे ज्यादा से ज्यादा भाग-दौड़ वाले खेल खेलने के लिए प्रेरित करें । इसके साथ ही उनसे Meditation/ ध्यान भी करवाएँ । ध्यान करने से भी गुस्सा कम आता है ।

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  1. नींद पूरी होने दें –

बच्चे की भरपूर मात्रा में नींद अत्यंत आवश्यक है । बच्चा पर्याप्त मात्रा में नींद लेगा तो उसका मन भी शांत रहेगा । यदि बच्चे की नींद ना पूरी हो तो वह पूरे दिन चिड़चिड़ाए रहता है और रोते रहता है । बात – बात पर गुस्सा भी दिखाता है । इसलिए आवश्यक है कि उसे रात में जल्दी सुला दें ।

Sleeping baby
studying baby
  1. अत्यधिक अनुशासित न हों –

बच्चों पर अत्यधिक discipline/ अनुशासन भी न रखें । उनके साथ खेलें तथा उन्हें ढ़॓र सारा प्यार दें । उनके साथ चित्र बनाएँ, इंडोर गेम्स इत्यादि करवाएँ । कहने का तात्पर्य है कि अपने बच्चे के साथ एक मित्र की तरह रहें ।

  1. स्वास्थ्य पर ध्यान दें –

बच्चे के health/ स्वास्थ्य पर अत्यंत ध्यान दें । कमज़ोर बच्चों को गुस्सा जल्दी आता है । अपने बच्चे के गुस्से को नियंत्रण करने में भोजन की अहम भूमिका होती है । उन्हें जहाँ तक सम्भव हो ताजा पकाया हुआ भोजन ही देना चाहिए । कोल्ड स्टोरेज में रखा भोजन नहीं खाना चाहिए । इसके साथ ही चिप्स के बदले फल का आनंद लेने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें । भोजन का दिमाग पर सीधा प्रभाव पड़ता है । इसलिए बच्चे को समय पर भोजन का सेवन कर लेना चाहिए । इससे उनके स्वभाव या दृष्टिकोण पर एक निश्चित प्रभाव पड़ता है ।

Healthy baby
  1. सराहना करें –

यदि बच्चा अच्छा काम करे तो दूसरों के सामने उसकी प्रशंसा करें । इससे उसे लगेगा कि लोग उसके अच्छे कामों को भी ध्यान देते हैं न कि केवल बद्माशियों को । इसलिए उसकी सराहना करते रहना चाहिए ।

  1. आक्रामकता से बचें –

यदि आपका बच्चा Aggressive/ आक्रामक है तो अपनी खुद की जीवन-शैली देखें । आपको इस बात का हर समय ध्यान देना होगा कि आप अपने आस – पास के लोगों पर आक्रामक व्यवहार ना करें । वयस्क और बच्चे दोनों के लिए समान नियमों को लागू करने की आवश्यकता है । अपने बच्चे के सामने किसी भी इंसान पर गुस्सा ना दिखाएँ ।

Screaming Girl

अंत में मैं यही कहना चाहती हूँ कि आप अपने व्यवहार में शालीनता लाइए । आपका बच्चा स्वयं शालीन प्रवृत्ति का बन जाएगा । अत: आप 10 Tips to control babies anger/बच्चों के गुस्से को नियंत्रित करने के 10 उपाय पर ध्यान दें । इन उपायों पर ध्यान देने से आपका बच्चा जल्दी ही अपने गुस्से पर नियंत्रण करना सीख जाएगा ।  

आपको मेरा लेख 10 Tips to control babies anger/बच्चों के गुस्से को नियंत्रित करने के 10 उपाय कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएँ । इसके साथ ही आप यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वह भी दे सकते हैं ।

12 Best Parenting tips |Hindi| परवरिश के 12 सर्वोत्तम तरीके

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किसी भी बच्चे के जन्म के बाद से ही उसके माता-पिता उसकी अच्छी परवरिश करना चाहते हैं । प्रत्येक माता- पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे सबसे अच्छे हों । उनमें सबसे अच्छे संस्कार हों तथा सभी लोग उनके अच्छे गुणों की वजह से उन्हें जानें । ऐसा तभी होगा जब आप अपने बच्चों को अच्छे गुण सिखाएंगे । एक बच्चे के अंदर अच्छे गुण उसके माता-पिता से ही आते हैं। माता – पिता सही आचरण रखेंगे तो बच्चा भी सही आचरण अपनाएगा । सभी बच्चे अपने माता – पिता का ही प्रतिनिधित्व करते हैं । लेकिन प्रत्येक बच्चा अलग होता है । प्रत्येक बच्चे का स्वभाव भी अलग होता है । इसी वजह से Parents को उनकी परवरिश करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है । आपके इन्हीं परेशानियों को दूर करने के लिए मैं आपके समक्ष कुछ आसान से 12 Best Parenting tips |Hindi| परवरिश के 12 सर्वोत्तम तरीके  प्रस्तुत करूँगी । जिसे अपनाकर आप अपने बच्चों को समझने के साथ-साथ उनकी अच्छी तरह से परवरिश भी कर पाएंगे ।

सबसे पहले तो आपको यह जानना जरूरी है कि Good Parenting का मतलब क्या है ? एक अच्छी परवरिश का मतलब केवल बच्चे को खाना खिलाना या उसकी जरूरतों को पूरा करना नहीं है । बल्कि उसे अच्छी तरह समझना तथा उसे अच्छे संस्कार देना है । आपको Child Psychology को समझना बहुत जरूरी है । जब तक आप यह नहीं समझेंगे आप एक अच्छे अभिभावक नहीं बन सकते हैं । तो आइए जानते हैं Best Parenting advice –

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  1. आप शुरु से ही अपने नवजात बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा बात करें । आप अपने बच्चे से जितनी बात करेंगे वह आपकी भाषा भी जल्दी सीखेगा । जब आप उससे बात करें तो ध्यान रखें कि आपका तरीका सकारात्मक हो । उससे बात करते समय अपनी आवाज़ को Soft रखें । उनके साथ अपनी खुशी और दुख बाँटें । ऐसा करने से बचपन से ही वे अपने घर की परिस्थिति को समझेंगे । इसके साथ ही बच्चे में भी आपसे हर बात बताने की आदत रहेगी और साथ ही आपके करीब भी रहेंगे ।
  2. जब आपका बच्चा आपकी ध्वनियों को दोहराकर और शब्दों को जोड़कर आवाज़ करता है तो उसका उत्तर दें । उसे नज़र अंदाज़ ना करें । चाहे वह जिस रूप में भी आपके साथ जुड़ना चाहें उससे जुड़ने की कोशिश करें । छोटे बच्चे ध्यान खींचते हैं । जब आप उन्हें ध्यान देते हैं तो उन्हें अच्छा लगता है । बचपन से ही वह आपके साथ जुड़ जाता है । तथा उसे भी लगता है आप उसे महत्त्व दे रहे हैं ।
  3. अपने बच्चे के दिमाग को पढ़ने की कोशिश करें । आप जानने की कोशिश करें कि वह क्या चाहता है । छोटे बच्चे बोल नहीं पाते हैं । वह तरह – तरह के संकेतों से अपनी बातों को आपके सामने रखने का प्रयत्न करते हैं । उनके संकेतों को समझने की कोशिश करें ।
  1. छोटे बच्चों के साथ Baby Rhymes / कविताएँ गाएं । इससे उनका मनोरंजन भी होगा और वह आपके साथ समय भी बिता पाएँगे । इसके साथ ही बचपन से ही उनका दिमाग विकसित होगा तथा उनमें रचनात्मकता / creativity बढ़॓गी ।
  2. अपने बच्चे की तारीफ करें तथा उनका पूरा ध्यान रखें । जब भी आपका बच्चा कोई अच्छा काम करे तुरंत उसकी तारीफ करें । इससे उसे सही और गलत की पहचान होगी । इसके साथ ही वह कोशिश करेगा कि दोबारा कुछ अच्छा करे जिससे उसकी तारीफ हो ।
  3. अपने बच्चे को सीने से लगा कर यह एहसास दिलाएँ कि आप उससे अत्यंत प्यार करते हैं । उसे यह भी समझाने की कोशिश करें कि आप उसकी हर परेशानी में साथ हैं ।
  4. अपने बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएँ । जब आपका बच्चा सतर्क और तनावमुक्त हो तब आप उसके साथ खेलें । आजकल माता-पिता दोनों कमाते हैं । इस वजह से वह अपने बच्चे के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते हैं । इससे बच्चा स्वयं को अकेला महसूस करने लगता है तथा उसका विकास भी ठीक से नहीं हो पाता है । इसलिए जरूरी है कि आपको जब भी समय मिले अपने बच्चे के साथ बिताएँ । उस समय कोई दूसरा कार्य ना करें ।
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  1. आप अपने बच्चे को बचपन से ही आत्म निर्भर बनाएँ । उससे उसके छोटे- छोटे कार्य स्वयं करवाएँ । जब उसका खेलना हो जाए तो उसके खिलौनों को व्यवस्थित ढंग से रखवाएँ । उसके प्लेटस उसी से रखवाएँ । यदि बच्चे ने खाना, खाना शुरू कर दिया हो तो धीरे-धीरे उसे स्वयं खाने के लिए प्रेरित करें । इस तरह के छोटे – मोटे कार्यों को करवाने से वह बचपन से ही आप पर निर्भर नहीं रहेगा ।
  1. यदि आपका बच्चा जिद करता है तो उसे मारे-पीटे नहीं । बल्कि उसे प्यार से समझाएँ । उसका ध्यान कहीं और भटकाएँ । जिससे वह उस बात को भूल जाए । छोटे बच्चे अत्यंत नाज़ुक और मासूम होते हैं । उनके साथ आप जैसा वर्ताव करेंगे वे वैसा ही सीखेंगे । उन्हें मारने-पीटने से वे और अधिक जिद्दी बन जाते हैं । अधिकांश माता-पिता अपने बच्चे को सुधारने के लिए उनपर चिल्लाते हैं तथा उन्हें मारते हैं । ऐसा करने से बच्चा कभी भी नहीं सुधरेगा । बल्कि और अधिक रोने लगेगा और जिद में वह भी चिल्लाने लगेगा । इसलिए अपने बच्चे को प्यार से समझाएँ कि उसने जो किया है वह गलत है ।
  1. अपने बच्चे को किसी भी तरह का लालच ना दें । अधिकांश अभिभावक अपने बच्चे से जब कोई बात मनवानी होती है तो उन्हें तरह – तरह के प्रलोभन देते हैं । अपने बच्चों को तरह- तरह की चीजों का प्रलोभन देना बिल्कुल गलत है । क्योंकि बाद में बच्चे लालची हो जाते हैं । वे आपकी किसी भी बात को नहीं मानेंगे और बात-बात पर आपसे अपनी माँगें पूरी करवाएँगे ।
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  1. माता – पिता को कभी भी अपना गुस्सा बच्चे पर नहीं निकालना चाहिए । उनके सामने अपशब्द का प्रयोग तो कदापि नहीं करना चाहिए । इससे बच्चे पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है । माता- पिता को अपनी समस्याओं को बच्चों से दूर रख कर अपनी भाषा पर नियंत्रण करना चाहिए । चाहे कितनी भी बड़ी परेशानी क्योँ ना हो अपने बच्चों पर असर नहीं होने देना चाहिए । यदि कोई अभिभावक ऐसा करता है तो उसके बच्चे के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है और वह चिड़चिड़ा हो जाता है ।
  2. छोटे बच्चों को ज्यादा से ज्यादा Physical Activity करवाएँ । इससे उनका शारीरिक विकास होगा । इसके साथ ही बच्चा घर पर है तो उसे खिलौनों से खेलने की आदत दें । उन्हें टीवी, लैपटॉप, स्मार्ट्फोन, टैबलेट की आदत ना लगाएँ । हाँलाकि आज टेक्नोलोजी का जमाना है । आप चाह कर भी बच्चों को इससे ज्यादा देर तक दूर नहीं रख सकते । इसलिए इन सब चीजों का एक समय निर्धारित कर दें । दिन भर इनका प्रयोग ना करने दें । यदि बच्चा दिन भर फोन, टीवी में ही लगा रहेगा तो उसके दिमाग का विकास नहीं होगा । इसलिए किसी भी गैजेट का प्रयोग एक निर्धारित समय सीमा में ही होना चाहिए । इसके साथ ही अभिभावकों को भी मोबाइल तथा अन्य गैजटों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए । तभी बच्चे भी आपसे सीख कर इसका प्रयोग कम करेंगे ।

अंत में मैं यही कहना चाहूँगी कि यदि आप अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान बनाना चाहते हैं तो पहले स्वयं को बदलने की कोशिश करें । आप जब तक स्वयं में अनुशासन नहीं लाएंगे आपका बच्चा भी अनुशासित नहीं रहेगा । इसके साथ ही माता-पिता को भी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ रहना होगा । Parenting में कड़ी मेहनत हो सकती है । यदि आप स्वयं स्वस्थ रहेंगे तो आपके लिए भी अपने बच्चे की परवरिश करने में आसानी हो जाएगी ।

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Baby care tips for New Moms |Hindi| बच्चे की देखभाल नई माताओं के लिए

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माँ बनना किसी भी महिला के लिए अत्यंत खुशी की बात होती है । यूँ कहें तो माँ बनना एक महिला के लिए दूसरा जन्म होता है । नौ महीने के लम्बे इंतज़ार के बाद माँ अपने बच्चे को देखते ही अपने सारे कष्टों को भूल जाती है । अब नई माताओं के सामने बच्चे की देखभाल की ज़िम्मेदारी आ जाती है ।  उन्हें ज़रा भी अनुभव नहीं होता है कि बच्चे की देखभाल कैसे करें । इसलिए पहली बार माँ बनने पर Baby care tips को जानना अत्यंत आवश्यक है । मैं आपके समक्ष कुछ आसान से Baby care tips for New Moms/बच्चे की देखभाल नई माताओं के लिए प्रस्तुत करूँगी । इससे आपको अपने बच्चे की देखभाल करने में काफी सहायता मिलेगी । इसके साथ ही आपका बच्चा भी स्वस्थ रहेगा ।

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Baby care after Delivery / प्रसव के बाद शिशु की देखभाल –

  • सर्वप्रथम आपको यह ध्यान रखना होगा कि बच्चा माँ का दूध ही पिए । यदि बच्चा माँ का दूध नहीं पी सकता तो अपने Feeding Expert की सलाह लें ।
  • अस्पताल में परिवार वालों के अलावा किसी भी बाहर के लोगों से बच्चे को सम्पर्क में ना आने दें । इससे बच्चे को Infection हो सकता है ।
  • आप जब भी बच्चे को गोद में लें हाथों को अच्छी तरह सैनिटाइज़ कर के ही लें ।
  • अपने आस – पास सफाई पर विशेष ध्यान दें ।
  • आपके शिशु के Umbilical Cord / गर्भनाल की देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है ।
  • बच्चा यदि Bottle Feeding कर रहा है तो उसके बोतल को अच्छी तरह से स्टरलाइज़ करना जरूरी है । बच्चे को दूध पिलाते समय बोतल को 45 डि. के कोण में रखकर ही पिलाएँ ।
  • बच्चे को ज्यादा से ज्यादा Swaddle कर के ही रखें ।
  • बच्चे को जब भी Feeding कराएँ अच्छी तरह से डकार दिलाएँ । इससे उनका पाचन सही रहेगा ।
  • बच्चे को छ : महीने तक माँ का दूध या फॉर्मूला दूध के अलावा कुछ भी ना दें । शहद इत्यादि बिल्कुल ना दें ।

How to carry a Newborn baby / बच्चे को गोद में लेने का तरीका –

नई माताओं को यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि बच्चे को गोद में कैसे लें । आप अपने Experts से जरूर सीखें कि बच्चे को गोद में किस तरह से लें । नवजात शिशु का अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता है । इसलिए उन्हें गोद में लेते समय उनके सिर को अच्छी तरह से पकड़ना अत्यंत आवश्यक है ।

Carry baby

Newborn Baby Feeding Time / नवजात शिशु को खिलाने का समय –

माँ का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम होता है । इससे बच्चे को Immunity आती है । कम – से – कम  छ: महीने तक शिशु को माँ का दूध अवश्य पिलाएँ । इससे उनका बौद्धिक विकास जल्दी होता है तथा वह स्वस्थ भी रहते हैं । नवजात शिशु को हर दो घंटों में Feeding कराना चाहिए ।

Newborn baby sleep / नवजात शिशु की भरपूर नींद –

नवजात शिशु की नींद पर भी हमें ध्यान देना जरूरी है । बच्चों के साथ खेलना किसे नहीं पसंद लेकिन इसके साथ उनकी नींद भी जरूरी है । किसी भी नवजात शिशु को 16 से 20 घंटे अवश्य सोना चाहिए ।

Baby sleep

Tips for Diaper Changing / डायपर बदलने के टिप्स –

अपने बच्चे का डायपर बार-बार जरूर चेक करते रहना चाहिए । छोटे बच्चों का डायपर बहुत जल्दी गंदा हो जाता है । इसलिए हमें यह ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है कि बच्चे का डायपर साफ है कि नहीं । बच्चे का डायपर समय – समय पर नहीं बदला गया तो उसे Infection हो सकता है ।

Tummy Time for Newborn baby / नवजात बच्चे के लिए पेट का समय–

अपने बच्चे को Tummy Time जरूर देना चाहिए । इससे उसका पाचन सही रहेगा और उसका विकास अच्छा होगा । Tummy Time आप कभी भी दे सकती हैं । जब भी आप अपने बच्चे के साथ खेल रही होती हैं उसे पेट के बल सुला दिया करें । इससे आपका बच्चा स्वस्थ रहेगा ।

Tummy time

Newborn baby massage / नवजात शिशु की मालिश –

नवजात शिशु की मालिश अत्यंत आवश्यक है । इससे उसकी मांस – पेशियाँ मजबूत होती हैं । आप प्रत्येक दिन किसी भी अच्छे से बेबी ऑएल से अपने बच्चे की मालिश कर सकती हैं । आपको जब भी समय मिले अपने हल्के हाथों से बच्चे की मालिश कर सकती हैं । एक बात का ध्यान रहे यदि किसी समय आपका बच्चा मालिश करवाना ना चाहे तो उसे बिल्कुल भी मालिश ना करें । किसी भी इंसान की मालिश उसके आराम के लिए होती है ना कि उसे तकलीफ देकर । छोटे बच्चे भी रोकर बताना चाहते हैं कि उन्हें मालिश नहीं पसंद आ रही है ।  इसलिए यदि आपके बच्चे को मालिश पसंद आ रही है तो आप दिन में जितनी बार चाहें उसकी मालिश कर सकती हैं ।

Baby massage

उपर्युक्त बातों का ध्यान रखने के साथ – साथ माँ को अपना भी ख्याल रखना अत्यंत आवश्यक है ।  माँ को पौष्टिक आहार जरूर लेना चाहिए क्योंकि इस समय माँ स्वस्थ रहेगी तभी बच्चे की अच्छी तरह देखभाल कर पाएगी । सबसे महत्वपूर्ण बात इस दौरान बच्चा माँ के दूध पर ही निर्भर रहता है तो माँ को अच्छी तरह से पौष्टिक आहार लेना चाहिए ।

आपको मेरा लेख Baby care tips for New Moms/ बच्चे की देखभाल नई माताओं के लिए कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएँ । इसके साथ ही आप यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वह भी दे सकते हैं ।

Teething issues in babies |Hindi| बच्चों में दाँत आने की समस्याएँ

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माता – पिता अपने शिशु के जन्म के बाद से ही उनके अंदर होने वाले हर बदलाव को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं । शिशु का दाँत निकलना भी उनके जीवन का एक अभिन्न अंग है । इस समय शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास हो रहा होता है । अचानक से उनके स्वभाव में बदलाव होने लगता है । छोटे से शिशु बोल नहीं पाने के कारण रोते रहते हैं । उनके माता-पिता को भी समझ नहीं आता है कि उनके बच्चे में अचानक से यह बदलाव कैसे । कुछ बच्चे बहुत चिड़चिड़॓ हो जाते हैं । उन्हें किसी भी चीज में मन नहीं लगता है । अचानक से खाना बंद कर देते हैं । इस वजह से उनका स्वास्थ्य भी गिर जाता है । आपके इन्हीं परेशानियों जैसे Teething issues in babies| बच्चों में दाँत आने की समस्याओं को दूर करने के लिए कुछ आसान और घरेलू उपचार मैं आपके सामने प्रस्तुत करूँगी । लेकिन उसके पहले आपको दाँत निकलने की पूरी प्रक्रिया जानना बहुत जरूरी है ।

बच्चों में जो पहला दाँत निकलता है उसे दूध का दाँत कहते हैं । इस प्रक्रिया की शुरूआत 6 – 8 महीने का होता है । 3 वर्ष तक बच्चों के कुल 20 दाँत निकल जाते हैं । किसी – किसी babies में यह प्रक्रिया 3 महीने से ही शुरू हो जाती है लेकिन इसमें परेशानी वाली कोई बात नहीं है । प्रत्येक बच्चा अलग होता है । हर बच्चे का शरीर अलग होता है ।

बच्चों के जब दाँत निकलते हैं तो उनके मसूड़॓ फूल जाते हैं और लाल भी हो जाते हैं । इस वजह से उन्हें मसूड़॓ में काफी जलन होती है । मसूड़ा जब फूलना शुरू होता है उसके पाँचवे या छठे दिन के बाद दाँत फटकर बाहर आ जाते हैं । यह पूरी प्रक्रिया 1 से 10 दिन का होता है ।

कैसे पता चले कि बच्चे का दाँत निकलने वाला है –

  • उन्हें हर चीज अपने मुँह में डालने की इच्छा होती है ।
  • वह अपनी ऊँगलियों को हर समय अपने मुँह में डालते रहते हैं तथा किसी भी चीज को वह अपने मुँह में डालने की कोशिश करते हैं ।
  • बिना किसी बात के बच्चे रोते रहते हैं ।
  • बच्चे के मुँह से हर समय लार टपकते रहता है ।
  • मसूड़॓ में सूजन आ जाती है ।
  • अचानक से बच्चे का स्वास्थ्य गिर जाता है । बच्चा सुस्थ पड़ जाता है ।
  • बच्चे को किसी भी चीज में रूचि नहीं होती है । वह चिड़चिड़ा – सा वर्ताव करने लगता है ।
  • सोने में मुश्किल होती है ।
  • बच्चे के शरीर के तापमान में हल्का सा बदलाव आ जाता है ।
  • बच्चे की भूख अचानक से चली जाती है ।
  • कुछ बच्चे अचानक से शरारती हो जाते हैं । उधम मचाने लगते हैं ।
  • कान खींचना ।

Teething issues in babies| बच्चों में दाँत आने की समस्याओं से उभरने के कुछ उपाय –

  • जब बच्चे के दाँत में जलन हो तो अपनी ऊँगलियों को अच्छी तरह से साफ करके उनके मसूड़॓ को हल्के से दबाने से उन्हें काफी राहत मिलती है । आप किसी साफ कपड़॓ से भी यह प्रक्रिया कर सकते हैं ।
  • गाजर, मूली या चुकंदर को फ्रिज में हल्का ठंडा करके बच्चे के हाथ में दे सकते हैं जिससे वह उसे चबाए और उसे राहत मिले ।
  • टीथर्स से भी बच्चे को आराम मिलता है । लेकिन इसका प्रयोग अपने बच्चे के डॉक्टर से पूछ कर सही टीथर ही ले आएँ ।
  • बच्चे का ध्यान अन्य चीजों में लगाने की कोशिश करें । उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएँ । उसके साथ खेलें तथा उसका पूरा ध्यान दें ।
  • बच्चे को हल्का ठंडा खाना दें । गरम खाने से उसे और तकलीफ होगी ।
  • साफ सफाई पर विशेष ध्यान दें ।

उपर्युक्त इन बातों का ध्यान देने से नए माता – पिता का जीवन आसान हो जाएगा और आप अपने बच्चे की देखभाल सही तरीके से कर पाएँगे । अत: जो Teething issues in babies| बच्चों में दाँत आने की समस्याएँ हैं वह भी दूर हो जाएंगी । कुछ कल्पित कथाएँ भी आपको सुनने को मिलेंगी । जैसे दाँत निकलने के समय बच्चे को दस्त हो जाता है । आपको यह बता दूं दस्त दाँत निकलने की वजह से नहीं होता है बल्कि इस वजह से होता है क्योंकि इस समय आपके बच्चों के दाँतों में जलन होती है और उसे शांत करने के लिए बच्चे हर चीज मुँह में डालते हैं और इसी वजह से उनके पेट में गंदगी के जाने के कारण दस्त वगैरा हो जाता है । इस दौरान बच्चों के मुँह से लार टपकता है और काफी लार अंदर उसके पेट में भी जाता है और इसी वजह से भी गंदगी उसके पेट में जाती है और बच्चा बीमार पड़ जाता है । इन सब बातों में ध्यान ना दें और जो आपके डॉक्टर कहते हैं उनका ध्यान दें । आपके बच्चे की यह पूरी प्रक्रिया बहुत ही अच्छी तरह से बीत जाएगी ।

आपको मेरा लेख Teething issues in babies| बच्चों में दाँत आने की समस्याएँ कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएँ । इसके साथ ही आप यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वह भी दे सकते हैं ।

7 Tips to make newborn baby sleep |Hindi| नवजात शिशु को सुलाने के 7 उपाय

Newborn Baby Sleep

किसी भी शिशु के जन्म लेते ही घर में खुशी का माहौल छा जाता है । चारों तरफ बच्चे की किलकारी गूँजने लगती है । अचानक से जैसे पूरे घर की रौनक ही बदल जाती है । शिशु के माता-पिता तो जैसे अपने बच्चे में ही व्यस्त हो जाते हैं । लेकिन इस व्यस्तता में भी हमें यह ध्यान रखने की अत्यंत आवश्यकता है कि हमारे बच्चे की नींद सही से पूरी हो रही है या नहीं । बच्चे को माँ के गर्भ में जिस तरह सोने की आदत होती है वह बाहर भी वही वातावरण चाहता है । वह उसी आराम की उम्मीद बाहर की दुनिया में करता है । उसे वह आराम नहीं मिलता है तो वह रोकर अपनी सबसे करीबी माँ को बताने की कोशिश करता है । चूँकि माँ को अनुभव नहीं होता है इसलिए वह शुरू में अपने बच्चे के रोने का कारण समझ नहीं पाती है । Newborn baby रात भर ठीक से नहीं सोने के कारण रोते रहता है । आपके इन्हीं परेशानियों को दूर करने के लिए मैं लेकर आई हूँ – 7 Tips to make newborn baby sleep |Hindi| नवजात शिशु को सुलाने के 7 उपाय जिसका पालन करने से नए माता-पिता का जीवन सरल हो जाएगा ।

सबसे पहले तो आपको यह जानना बहुत जरूरी है कि 0-3 महीने के newborn baby को रात में कितनी देर सोना चाहिए । 0-3 महीने के शिशुओं को ज्यादा से ज्यादा 16 घंटे जरूर सोना चाहिए । नवजात शिशु हर दो घंटे पर फ़ीडिंग के लिए उठते हैं । यदि शिशु ना उठे तो उसे उठा कर फीडिंग जरूर कराना चाहिए । इसके बाद उसे तुरंत सुला देना चाहिए ।

यदि आपका शिशु ठीक से ना सोए तो वह काफी रोता है और चिड़चिड़ा भी हो जाता है । छोटे बच्चे अपनी समस्याओं को बता नहीं सकते हैं । इसीलिए वह रोकर अपनी बातों को बताने की कोशिश करते हैं ।  ऐसे में उन्हें बड़॓ प्यार से देखभाल की जरूरत होती है । अब बात करते हैं  7 Tips to make newborn baby sleep |Hindi| नवजात शिशु को सुलाने के 7 उपाय

  1. सबसे पहले तो जिस समय आपको अपने शिशु को सुलाना है उसका एक रोज का समय जरूर निर्धारित कर लीजिए । उस समय को बदलिए नहीं । हर दिन सोने का समय बदलने से शिशु भ्रमित हो जाएगा कि उसे सोना कब है । इसलिए समय निर्धारित करना अत्यंत आवश्यक है ।

  2. सुलाने से पहले माँ को चाहिए कि अपने शिशु को बड़॓ ही प्यार से आरामदेह मालिश दे । इससे शिशु के बदन में दर्द भी रहा तो मालिश से दूर हो जाएगा । उसके बाद हल्के गुनगुने पानी से उसे स्पंज बाथ दें । इससे आपके शिशु को आराम महसूस होगा और उसे अच्छी नींद आएगी ।

  3. यदि सर्दी का मौसम है तो उसे हल्के गरम कपड़॓ पहना कर सुलाएँ और यदि गर्मी का मौसम है तो उसे हल्के आरामदेह कपड़॓ पहना कर सुलाएँ । बच्चे को किसी भी मौसम में अतिरिक्त टाइट (तंग) कपड़॓ ना पहनाएँ जिससे उसे तकलीफ हो । मौसम के अनुकूल आरामदेह कपड़॓ पहना कर सुलाने की कोशिश करें ।  

  4. सोने का वातावरण अनुकूल होना चाहिए । उसे उसके ही कमरे में सुलाएँ । इधर – उधर ना सुलाएँ । उसे बचपन से ही पता होना चाहिए कि उसे उसके ही कमरे में सोना है । उसे उसके कमरे में ले जाते ही धीरे-धीरे उसे यह समझ आ जाएगा कि अब उसके सोने का समय हो चुका है । सुलाने के समय कमरे में अंधेरा होना बहुत ज़रूरी है । इससे शिशु को नींद जल्दी और अच्छी आएगी । यदि रात में उसकी नींद खुल भी जाए तो रोशनी ना करें नहीं तो बच्चा जग जाएगा और सो नहीं पाएगा ।

  5. आप उसे लोरी गाकर या पालने में रखकर झुलाते हुए सुला सकते हैं । एक ही कमरे में गोद में लेकर घूम- घूम कर भी सुला सकते हैं । लेकिन इस बात का भी ध्यान दें जब शिशु को नींद आने लगे तो उसे तुरंत उसके बिस्तर पर सुला दें वर्ना उसे गोद की आदत लग जाएगी और जब भी आप उससे दूर जाएँगी वह उठ जाएगा ।

  6. आपके शिशु को सुलाने के समय रोज एक ही कमरे का इस्तमाल करें जिससे रात में जब आप उसे उस कमरे तक ले जाएँ उसे धीरे-धीरे यह आभास होने लगे कि अब मुझे सोना है ।

  7. शुरू में जब आप अपने शिशु का नियमित कार्यक्रम बनाएँगी हो सकता है वह उस नियमित कार्यक्रम में ना ढले। लेकिन आप इससे घबराएँ नहीं, उस नियमित कार्यक्रम का रोज़ पालन करें । आपका शिशु भी अपने नियमित कार्यक्रम को समझ जाएगा तथा उसके अनुसार ढल जाएगा ।

उपर्युक्त 7 Tips to make newborn baby sleep |Hindi| नवजात शिशु को सुलाने के 7 उपाय नियमों का पालन करने में एक बात अत्यंत आवश्यक है धीरज । जब तक आपमें धीरज नहीं होगा आप अपने शिशु का रूटिन नहीं निर्धारित कर सकते । हो सकता है शुरू में आपको तकलीफ हो लेकिन धीरे-धीरे आपका जीवन सुखमय होते जाएगा ।

आपको मेरा लेख कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएँ । इसके साथ ही आप यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वह भी दे सकते हैं ।